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*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*👉🏻लेख क्र.-सधस/२०८०/अधिक श्रावण/कृ./११- ११४८९*
┉══════❀((“ॐ”))❀══════┉┈
🌹🙏 ॥ आनंद की खोज ॥🙏🌹

केवल मानव जन्म मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु हमें जीवन जीने की कला भी आनी आवश्यक है। पशु- पक्षी तो बिल्कुल भी संग्रह नहीं करते फिर भी भी उन्हें इस प्रकृति द्वारा जीवनोपयोगी सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

आनन्द साधन से नहीं साधना से प्राप्त होता है। आंनद भीतर का विषय है, तृप्ति आत्मा का विषय है। मन को कितना भी मिल जाए , यह अपूर्णता का बार – बार अनुभव कराता रहेगा। जो अपने भीतर तृप्त हो गया उसे बाहर के अभाव कभी परेशान नहीं करते।

जीवन तो बड़ा आनंदमय है लेकिन हम अपनी इच्छाओं के कारण, अपनी वासनाओं के कारण इसे कष्टप्रद और क्लेशमय बनाते हैं। केवल संग्रह के लिए जीने की प्रवृत्ति ही जीवन को कष्टमय बनाती है। जिसे इच्छाओं को छोड़कर आवश्यकताओं में जीना आ गया, समझो उसे सुखमय जीवन का सूत्र भी समझ आ गया।

🙏 जय श्री राधे कृष्ण 🙏
🌺शुभ रात्रि 🌺

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  1. विलम्बो नैव कर्तव्यः आयुर्याति दिने। न करोति यमः क्षान्तिं धर्मस्य त्वरिता गतिः।।
Praja Math News
Author: Praja Math News

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